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भगवान के एहसास के राह
भगवान के एहसास के खातिर, कुछ चीज़न पर ध्यान देवे के ज़रूरत बा। एह बात के समझे के जरूरी बा कि भगवान के एहसास कवनो बाहरी ताकत से ना हो सकेला। जइसे धन के बल पर, आजकल के ज़माना में, आदमी कई चीज़ कर सकेला। लेकिन ई ना मने कि आप भगवान के खरीद सकेनी। ना, ई संभव ना बा।
प्रभुपाद कहले, “वैराग्य-विद्या-निज-भक्ति-योग-शिक्षार्थम् एकः पुरुषः पुराणः श्रीकृष्ण-चैतन्य-शरीर-धारी।” ई श्लोक सर्वभौमा भट्टाचार्य द्वारा रचित ह। सर्वभौमा भट्टाचार्य के बारे में आप सब सुने होखब? उ एक महान अद्वैतवादी रहलन, जिनका भगवान चैतन्य के द्वारा वैष्णव धर्म में लावल गइल।
ज्ञान आ भक्ति के महत्त्व
ई बात के समझल जरूरी बा कि भगवान के एहसास मटेरियल इंटेलिजेंस या विद्या पर निर्भर ना करेला। वेद में कहल गइल बा, “नायमात्मा प्रवचनेंन लभ्य:”। मतलब, आप तर्क आ विद्या के जरिए आत्मा के ना समझ सकेनी। ई गुण भले ही अच्छे बाड़न, लेकिन भगवान के एहसास के खातिर ई पर्याप्त ना ह।
भगवान के एहसास तब हो सकेला जब ऊ खुद के प्रकट करे लें। “यम् एवैषा वृणुते तेन लभ्य:”। जब भगवान खुश होखेलन, त ऊ अपने भक्त के सामने आ जालन। एह से, हमनी के सबसे पहिले भगवान के खुश करे के कोशिश करे के चाहीं। ई खुश करे के प्रक्रिया भक्ति सेवा ह।
गोपियन के भक्ति
गोपियन के उदाहरण ले लीं। उ लोग गाँव के साधारण किसान के बेटियाँ रहलन। उनका पास कवनो विशेष शिक्षा ना रहल। लेकिन उ लोग भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में अति समर्पित रहल। जब कृष्ण गोचर के जाएँ, त उ लोग रोवे लग जाला। उनका मन में ई सोच चलत रहे कि “कृष्ण के पांव के नीचे के कंकड़ उनकर नाज़ुक शरीर के चुभी जाई।” एह तरह के भक्ति से उ लोग भगवान के जीत लेहलन।
सच्ची भक्ति के पहचान
सच्ची भक्ति के पहचान ई बा कि जब आदमी भौतिक चीज़न के प्रति उदासीन हो जाला। भक्ति में वैराग्य आ ज्ञान के मेल जरूरी बा। सर्वभौमा भट्टाचार्य कहले, “वैराग्य-विद्या-निज-भक्ति-योग।” जब आदमी कृष्णा के भक्ति में आगे बढ़ जाला, त ऊ भौतिक चमक-दमक के परवाह ना करेला।
दान आ पुण्य
दान के परंपरा पर भी ध्यान देवे के जरूरत बा। भारत में ब्राह्मण लोगन के दान देवे के परंपरा बा। लेकिन आजकल लोग बिना सोच-विचार के दान देवे लगेला। दान के तीन प्रकार ह: सत्त्विक, राजसिक आ तामसिक। सत्त्विक दान ऊ ह, जहाँ सही जगह पर दान दिया जाला। राजसिक दान ऊ ह, जहाँ लोग नाम कमावे खातिर दान देला। आ तामसिक दान ऊ ह, जहाँ दान देने वाला ना जानेला कि ऊ कवन चीज़ के दान दे रहल बा।
FAQs
भगवान के एहसास कैसे हो सकेला?
भगवान के एहसास तब हो सकेला जब ऊ खुद के प्रकट करे लें, आ ई भक्ति सेवा के माध्यम से होखेला।
गोपियन के भक्ति में का खास बा?
गोपियन के भक्ति में समर्पण आ कृष्ण के प्रति गहरी भावना होखेला, जेकरा चलते उ लोग भगवान के जीत लेहलन।
दान के सही तरीका का ह?
दान हमेशा सोच-समझ के आ उचित जगह पर करना चाहिए। सत्त्विक दान सबसे उत्तम मानल जाला।
भगवान के एहसास आ भक्ति के राह में सच्ची निष्ठा आ समर्पण के बहुत महत्त्व बा। जब हमनी के ई समझ पाईब, तब हमनी के जीवन में सच्चा सुख आ शांति आई।
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