शिव के मतलब आ महत्व
जब हम “शिव” के बात करीला, त हमनी के दू गो महत्वपूर्ण पहलू के जिक्र होला। “शिव” के शाब्दिक मतलब ह “जवन नइखे।” शिव ह अनंतता। आधुनिक विज्ञान हमनी के ई बतावत बिया कि सभ चीज़ कुछु नइखे से शुरू होखेला आ फेर से कुछु नइखे में लवट जाला। अस्तित्व के बुनियादी गुण आ ब्रह्मांड के मूल स्वभाव ह विशाल कुछु नइखे। गैलेक्सियाँ त बस एगो छोट घटना ह – बाकी त सब विशाल खाली जगह बिया, जेकरा के शिव कहल जाला। ई ओह गर्भ के रूप में ह जहाँ से सभ चीज़ जनम लेला, आ ओह नाश के रूप में ह जहाँ सभ चीज़ वापस जाला। सभ कुछ शिव से आवेला आ शिव में ही वापस जाला।
शिव के पहचान
शिव के “नाशक” के रूप में जानल जाला, जवन त्रिमूर्ति में शामिल बिया, जेकरा में ब्रह्मा आ विष्णु भी बाड़न। शैविज्म परंपरा में, शिव एगो सर्वोच्च देवता ह जवन ब्रह्मांड के निर्माण, संरक्षण आ रूपांतर में शामिल बाड़न। शिव के चित्रण में ओह के गले में सर्प, चाँद के अदornment, मटके बाल से बहत गंगा, माथा पर तिसरा आंख, आ त्रिशूल जइसन अस्त्र शामिल बाड़न। शिव के “महायोगी” कहल जाला, जवन खुद में पूर्ण रूप से लीन बाड़न – transcendental reality के प्रतीक। शिव के पत्नी पार्वती बाड़ी, जेकरा के काली आ दुर्गा के रूप में अवतार भी मिलल।
शिव के डमरू के महत्व
शिव के डमरू ब्रह्मांड के प्रतीक ह, जे हमेशा फैलता आ समेटता बाड़ा। ई विस्तार से समेटे आ फिर से फैलने के प्रक्रिया के द्योतक ह। अगर आप अपन दिल के धड़कन देखीला, त ई एक सीधा रेखा नइखे, बलुक ई एक लय ह जे उपर-नीचे होला। संसार के हर चीज़ लय में बिया; ऊर्जा के उठना आ समेटना। डमरू के आकार से ई साफ़ होखेला कि ई विस्तार से समेटता आ फिर से विस्तार करता।
शिव के गले में सर्प के महत्व
पुराणन के अनुसार, जब समुद्र के मंथन होखत रहे, त ओकरा से भयंकर विष निकसल जवन शिव के पीना परल। शिव के साथ कुछ सर्प भी ओह विष के पी गइले। शिव के गले में सर्प के धारण करल एह बात के संकेत ह कि उ समय आ मृत्यु के स्वतंत्र बाड़न। सर्प के हार में ई भी संदेश बिया कि कोई बुराई शिव के भक्तन के नुकसान नइखे पहुँचा सकीला, अगर ऊ ओह के शरण में आके पूजा करे।
शिव के त्रिशूल के महत्व
त्रिशूल तीन गो चेतना के पहलू – जागरूकता, सपना आ नींद के प्रतीक ह। ई तीन गुण – सत्व, रजस आ तमस के भी प्रतिनिधित्व करे ला। त्रिशूल धारण कइला से ई सिद्ध होखेला कि शिव (दिव्यता) ई तीन अवस्था से ऊपर बाड़न, लेकिन ई तीन अवस्था के पालन भी करे ला।
शिव के नीला शरीर के महत्व
नीला रंग आकाश के प्रतीक ह। ई सभी जगह में बिखराव, अनंतता आ सीमाहीनता के दर्शावे ला। शिव के कोई रूप नइखे। शिव के अनंतता के प्रतीक बनावे खातिर प्राचीन ऋषियन एक रूप बनाया।
महेश्वर मूरत
महेश्वर मूरत शिव के रूप ह, जे दक्षिण भारतीय शैव सिद्धांत परंपरा में पूजित बाड़न। ई मूरतन के संख्या आमतौर पर पचीस मानल जाला। ई मूरतन के विविध रूप आ कहानियन पर आधारित बाड़न, जे शिव के दिव्य लीला के दर्शावेलन।
FAQs
शिव के काहे पूजा करीं?
शिव के पूजा से मोक्ष आ शांति मिलेला।
शिव के डमरू के का महत्व ह?
डमरू ब्रह्मांड के लय आ विस्तार के प्रतीक ह।
शिव के गले में सर्प काहे बाड़ा?
सर्प समय आ मृत्यु पर नियंत्रण के प्रतीक ह।
शिव के त्रिशूल के का मतलब ह?
त्रिशूल चेतना के तीन गो अवस्था के प्रतिनिधित्व करे ला।
शिव के नीला रंग काहे बा?
नीला रंग अनंतता आ सीमाहीनता के दर्शावे ला।