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शिव पार्वती विवाह कथा: प्रेम आ भक्ति के अद्भुत मिलन

शिव पार्वती विवाह कथा

माता पार्वती के पिता हिमावन ने श्रेष्ठ मुनियन के आदर से बुला के, शुभ दिन, शुभ नक्षत्र आ शुभ घड़ी के खोज कइलन। वेद के विधि के अनुसार शीघ्र ही लग्न तय कर के लिखवा लेहलन। फिर हिमावन उ लग्नपत्रिका सप्तर्षियन के दे दिहलन। ओह लोगन ने जाके उ लग्न पत्रिका ब्रह्माजी के दी। ब्रह्माजी ने लग्न पढ़ के सबके सुनावल, सुन के सब मुनि आ देवता हर्षित हो गइले। आकाश से फूलन के वर्षा शुरू हो गइली, बाजे बजल आ दसों दिशा में मंगल कलश सज गइल।

शिव जी के श्रृंगार

सब देवता अपने-अपने वाहन आ विमान के सजावे लगले। मंगल शकुन होखे लगले आ अप्सराएँ गावे लगली। शिवजी के गण शिवजी के श्रृंगार करे लगले। जटाओ के मुकुट बना के, ओह पर साँप के मौर सजावल गइल। शिवजी साँप के कुंडल आ कंकण पहिनले, शरीर पर विभूति रमाइल आ वस्त्र के जगह बाघम्बर लपेटले। शिवजी के सुंदर मस्तक पर चन्द्रमा, सिर पर गंगाजी, तीन नेत्र, साँप के जनेऊ, गले में विष आ छाती पर नरमुण्डन के माला रहल। एक हाथ में त्रिशूल आ दुसरा में डमरू सुशोभित रहल। शिवजी बैल पर चढ़ के चललन। बाजे बजत रहलन। शिवजी के देख के देवांगनाएँ मुस्कुरात रहली आ कहत रहली कि एह वर के योग्य कोई वधू संसार में नइखे।

विष्णु आ ब्रह्मा के बारात छोड़ के जाना

विष्णु आ ब्रह्मा आ अन्य देवतागण अपने-अपने वाहनों पर चढ़ के बारात में चल गइलन। देवतान के समाज परम सुंदर रहल, लेकिन दूल्हा के योग्य बारात नइखे। तब विष्णु भगवान सब दिक्पालन के बुला के हँसते हुए कहलन कि “सब लोग अपने-अपने दल में अलग-अलग चलो। हे भाई! हमनी के ई बारात वर के योग्य नइखे। का पराए नगर में जा के हँसी कराओगे?”

शिव बारात के विवरण

विष्णु भगवान के बात सुन के देवता मुस्कुराइलन आ अपना-अपना सेना के साथ अलग हो गइलन। महादेवजी ई देख के मन-ही-मन मुस्कुरात रहले कि विष्णु भगवान के व्यंग्य-वचन नइखे छूटे! अपने प्यारे विष्णु भगवान के इन प्रिय वचनों के सुन के शिवजी ने भृंगी के भेज के अपने सब गणन के बुलवा लिहलन।

शिवजी के आज्ञा सुनते ही सब चल आइलन आ उनहनी ने शिव शंकर के चरण कमलन में सिर नवावल। तरह-तरह के सवारियों आ तरह-तरह के वेष वाला समाज देख के शिवजी हँसलन। कोई बिना मुख के, कोई के बहुत मुख रहल, कोई बिना हाथ-पैर के आ कुछ के कई हाथ-पैर रहल। कोई बहुत मोटा-ताजा, तो कोई बहुत दुबला-पतला। सबके भयंकर गहने पहिनल आ हाथ में कपाल लिए रहलन। गधे, कुत्ते, सूअर आ सियार जइसन उनकर मुख रहल। एह तरह से बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच आ योगिनियन के जमात बनल रहल।

शिवजी के आगमन आ पार्वती के माता के चिंता

जब हिमाचल के लोग शिवजी के दल के देखलन, त उनके सब वाहन (सवारियन के हाथी, घोड़े, रथ के बैल आदि) डर के भाग गइले। कुछ बड़े उम्र के समझदार लोग धीरज धर के ओहिजा डटे रहलन। छोटे लड़का सब त वहाँ से भाग गइले। घर पहुँच के जब माता-पिता पूछलन, त ऊ भय से काँपते हुए कहले – “का कहीं, कोई बात कहल नइखे जात। ई बारात ह या यमराज के सेना? दूल्हा पागल बा आ बैल पर सवार बा। साँप, कपाल आ राख ही ओह के गहना बा। दूल्हा के शरीर पर राख लागल बा, साँप आ कपाल के गहना बा, ऊ नंगा, जटाधारी आ भयंकर बा। ओकरा साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ आ राक्षस बा। जे बारात के देखी, ऊ जीता बचेगा, सचमुच ओकरा बड़ा पुण्य बा आ ओही पार्वती के विवाह देखी।”

लड़का सब ई सब बात कहले। माता मैना के दुखी देख के सारी स्त्रियाँ व्याकुल हो गइली। मैना अपनी बेटी पार्वती के स्नेह के याद करके विलाप करत रहीं।

पार्वती के माँ मैना के समझाना

माता के चिंता देख के पार्वतीजी विवेक युक्त कोमल वाणी में बोलीं – “हे माता! जे विधाता रच देले बाड़न, ओह लोगन के कर्म अनुसार भाग्य तय होला, उ टल ना सकेला, एही से चिंता मत कर।”

जब पार्वतीजी के एही कोमल वचन सुन के सब स्त्रियाँ सोच में पड़ गइलीं आ विधाता के दोष देवे लगलीं।

नारद जी के बात आ विवाह के मंजूरी

ई समाचार सुनते ही हिमनरेश हिमावन (पार्वती के पिता) तुरंत नारदजी आ सप्त ऋषियन के साथ लेके रानी मैना के पास गइलन। तब नारदजी ने पूर्वजन्म के कथा सुनाके सबके समझइलन आ कहलन कि – “हे मैना! तुम हमार सच्ची बात सुनो, तोहर ई लड़की साक्षात जगज्जनी भवानी ह। ई अजन्मा, अनादि आ अविनाशिनी बाड़ी, ई उ शक्ति ह जवन सदा शिवजी के अर्द्धांग में रहेली।”

फिर नारद जी कहले “ई जगत के उत्पत्ति, पालन आ संहार करे वाली बाड़ी आ अपनी इच्छा से ही लीला शरीर धारण करेली। अब इहाँ ई तोहरे घर जन्म लेके अपने पति के खातिर कठिन तप कइले बाड़ी। एही से संदेह छोड़ दो, पार्वतीजी त सदा ही शिवजी के पत्नी बाड़ी।”

तब नारद के वचन सुनके सबके विषाद मिट गइल आ क्षणभर में ई समाचार पूरे नगर में फैल गइल। तब मैना आ हिमवान आनंद में मग्न हो गइले आ उनहनी ने बार-बार पार्वती के चरणन के वंदना कइल। सब लोग बहुत प्रसन्न भइल।

शिव पार्वती विवाह के तैयारी

शिवजी बाद में लोगन के कहला पर दूल्हा के तरह वस्त्र धारण कइलन। मुनियन ने हिमवान के लग्न पत्रिका सुनाई आ विवाह के समय देखकर देवताओं के बुला भेजलन। सब देवता आइलन आ सबके योग्यता अनुसार आसन दिहल गइल। वेद के रीति से वेदी सजावल गइल आ स्त्रियाँ सुंदर श्रेष्ठ मंगल गीत गावे लगलीं।

विवाह के विधि प्रारंभ भइल। पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर कन्या के हाथ पकड़ के उनकर समर्पण कइल। जब शिवजी ने पार्वती के पाणिग्रहण कइल, त सब देव बड़े आनंदित भइलन। श्रेष्ठ मुनिगण वेदमंत्र के उच्चारण करे लगलन आ देवगण शिवजी के जय-जयकार करे लगलन।

बारात के विदाई

बहुत प्रकार के दहेज देकर, फिर हाथ जोड़ के हिमाचल कहलन – “हे शंकर! आप पूर्णकाम बानी, हम तोहरा के का दे सकीला?” ई कहके ऊ शिवजी के चरणकमल पकड़ के रह गइले। फिर प्रेम से मैना जी ने शिवजी से कहलन – “हे नाथ! ई उमा हमार प्राण के समान प्यारी बा। आप एकरा के अपने घर के टहलनी बनाइए आ एकर सब अपराध के क्षमा करत रहिएगा। अब प्रसन्न होके हमरा के यही वर दीजिए।”

फिर माता ने पार्वती के बुला के सुंदर सीख दी – “हे पार्वती! तू सदा शिवजी के चरणन के पूजा करिहा, नारियन के ईही धर्म बा। उनका खातिर पति ही देवता बाड़न आ अउर कोई देवता नइखे।”

पार्वतीजी माता से फिर मिलके चलीं, सब कोई उनकर योग्य आशीर्वाद दिहलन। पार्वतीजी मुड़-मुड़ के माता के ओर देखती रहीं। तब सखियाँ उनकरा के शिवजी के पास ले गइलन। महादेवजी सब याचकन के संतुष्ट कर के पार्वती के साथ कैलाश चल गइले। सब देवता प्रसन्न होके फूलन के वर्षा करे लगलन आ आकाश में सुंदर नगाड़ा बजने लगल।

तब हिमवान्‌ बहुत प्रेम से शिवजी के पहुँचावे खातिर साथ चललन। शिवजी ने बहुत तरह से उनहनी के संतोष कराके विदा कइलन। पर्वतराज हिमाचल तुरंत घर आए आ सब पर्वत आ सरोवरन के बुला के आदर, दान, विनय आ बहुत सम्मानपूर्वक सबके विदाई कइलन। जब शिवजी कैलाश पर्वत पर पहुँचले, तब सब देवता अपने-अपने लोकन के चल गइले।

FAQs

शिव पार्वती के विवाह कब भइल?

शिव पार्वती के विवाह तब भइल जब माता पार्वती के पिता हिमावन ने शुभ दिन आ घड़ी के निर्धारण कइलन।

शिवजी के श्रृंगार कइसन रहल?

शिवजी के श्रृंगार भव्य आ अद्भुत रहल, ऊ साँप, कपाल आ राख से गहना पहिनले रहलन।

पार्वती के माता के चिंता काहे भइल?

पार्वती के माता मैना के चिंता एह से भइल कि शिवजी के रूप भयानक आ विचित्र रहल।

नारद जी के संदेश का रहल?

Narad जी ने बतवलन कि पार्वतीजी साक्षात जगज्जनी भवानी बाड़ी आ उनकर विवाह शिवजी से होना तय बा।

शिव पार्वती के विवाह के बाद का भइल?

शिव पार्वती के विवाह के बाद सब देवता प्रसन्न होके फूलन के वर्षा कइलन आ शिवजी कैलाश चल गइलन।

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